'सी.एम.ऑडियो क्विज़- 10' आयोजन में भाग लेने वाले सभी प्रतिभागियों और विजेताओं को बधाई। जैसा कि हमने शुरू में ही कहा था इस क्विज श्रंखला में आपको विविधताएं मिलेंगी। हर बार फ़िल्म से जुडी क्विज़ हो ये आवश्यक नहीं है। इस बार हमने अध्यात्मिक जगत से जुडी दो शख्सियतों- रजनीश 'ओशो' और 'संत मोरारी बापू' की आवाजें सुनवाई थीं और प्रतियोगियों से उनका नाम पूछा था।
वर्तमान में बहुत से संत आये और गए मगर ये दोनों संत अपना विशेष स्थान रखते हैं। अगर युवा पीढ़ी को इनमें रूचि नहीं है तो कोई बात नहीं लेकिन जीवन दर्शन से रूबरू होना कुछ गलत नहीं है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए हमने ये दो क्लिप सुनवाई और आज इन दोनों महान गुरुओं का परिचय और उनके कुछ विचार आप के सामने रखे हैं।
इस बार हमको बहुत ही कम लोगों के सही जवाब प्राप्त हुए। सबसे पहले दर्शन बवेजा जी ने सही जवाब भेजा और प्रथम स्थान हासिल किया। उसके उपरान्त क्रमशः शुभम जैन जी और आशीष मिश्रा जी ने सही जवाब देकर द्वितीय व तृतीय स्थान प्राप्त किया।
आप सभी अपना स्नेह यूँ ही बनाये रखिये। आप की प्रतिक्रिया और सुझावों की प्रतीक्षा रहेगी। अब अगले रविवार को "सी.एम.ऑडियो क्विज़-11" में आपसे पुनः यहीं मुलाकात होगी।
समस्त विजेताओं व प्रतिभागियों को एक बार पुनः बहुत-बहुत बधाई और शुभ कामनाएं।
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अब आईये -
''सी.एम.ऑडियो क्विज-10' के पूरे परिणाम के साथ ही क्विज में पूछे गए दोनों प्रबुद्ध व्यक्तित्व के बारे में बहुत संक्षिप्त जानकारी प्राप्त करते हैं :
1- आचार्य रजनीश 'ओशो' [Osho]
11 दिसंबर 1931 को जब मध्यप्रदेश के कुचवाड़ा गाँव (रायसेन जिला) में ओशो का जन्म हुआ तो कहते हैं कि पहले तीन दिन न वे रोए, न दूध पिया। उनकी नानी ने एक ज्योतिषी से ओशो की कुंडली बनवाई, जो अपने आप में काफी अद्भुत थी। कुंडली पढ़ने के बाद ज्योतिषी ने कहा- 'यदि यह बच्चा सात वर्ष जिंदा रह जाता है, उसके बाद ही मैं इसकी पूर्ण कुंडली बनाऊँगा- क्योंकि इसके लिए सात वर्ष से अधिक जीवित रहना असंभव ही लगता है। ज्योतिष ने साथ ही यह भी कहा था कि 7 वर्ष की उम्र में बच गया तो 21 में मरना तय है, लेकिन यदि 21 में भी बच गया तो यह विश्व विख्यात होगा।'
सात वर्ष की उम्र में ओशो के नाना की मृत्यु हो गई तब ओशो अपने नाना से इस कदर जुड़े थे कि उनकी मृत्यु उन्हें अपनी मृत्यु लग रही थी वे सुन्न और चुप हो गए थे लगभग मृतप्राय। लेकिन वे बच गए और सात वर्ष की उम्र में उन्हें मृत्यु का गहरा अनुभव हुआ। 14 वर्ष की उम्र में उनके शरीर पर एक जहरिला सर्प बहुत देर तक लिपटा रहा। फिर 21 वर्ष की उम्र में उनके शरीर और मन में जबरदस्त परिवर्तन होने लगे उन्हें लगा कि वे अब मरने वाले हैं तो एक वृक्ष के नीचे जाकर बैठ गए, जहाँ उन्हें संबोधि घटित हो गई।
ओशो ने हर एक पाखंड पर चोट की। सन्यास की अवधारणा को उन्होंने भारत की विश्व को अनुपम देन बताते हुए सन्यास के नाम पर भगवा कपड़े पहनने वाले पाखंडियों को खूब लताड़ा। ओशो ने सम्यक सन्यास को पुनर्जीवित किया है। ओशो ने पुनः उसे बुद्ध का ध्यान, कृष्ण की बांसुरी, मीरा के घुंघरू और कबीर की मस्ती दी है। ओशो की नजर में सन्यासी वह है जो अपने घर-संसार, पत्नी और बच्चों के साथ रहकर पारिवारिक, सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए ध्यान और सत्संग का जीवन जिए। ओशो कहते हैं-
'आपने घर-परिवार छोड़ दिया, भगवे वस्त्र पहन लिए, चल पड़े जंगल की ओर। यह जीवन से भगोड़ापन है, और आसान भी है। भगवे वस्त्रधारी संन्यासी की पूजा होती आई है। वह दरअसल उसकी नहीं, उसके वस्त्रों की पूजा है। वह सन्यास आसान है क्योंकि आप संसार से भाग खड़े हुए तो संसार की सब समस्याओं से मुक्त हो गए। सन्यासी अपनी जरूरतों के लिए संसार पर निर्भर रहा और त्यागी भी बना रहा। लेकिन ऐसा सन्यास आनंद न बन सका। सन्यास से वे बांसुरी के गीत खो गए जो भगवान श्रीकृष्ण के समय कभी गूंजे होंगे-सन्यास के मौलिक रूप में।'
ओशो सरस संत और प्रफुल्ल दार्शनिक हैं। उनकी भाषा कवि की भाषा है उनकी शैली में हृदय को द्रवित करने वाली भावना की उच्चतम ऊँचाई भी है और विचारों को झँकझोरने वाली अकूत गहराई भी। उनकी गहराई का जल दर्पण की तरह इतना निर्मल है कि तल को देखने में दिक्कत नहीं होती। उनका ज्ञान अँधकूप की तरह अस्पष्ट नहीं है। कोई साहस करे, प्रयोग करे तो उनके ज्ञान सरोवर के तल तक सरलता से जा सकता है।
ओशो ने जीवन में कभी कोई किताब नहीं लिखी। मगर दुनिया भर में हुए संतों और अध्यात्मिक गुरुओ की श्रृंखला में वे एक मात्र ऐसे व्यक्ति हैं जिनका बोला गया एक-एक शब्द प्रिंट, ऑडिओ और वीडिओ में उपलब्ध है। आज ओशो एक ऐसी शख्सियत हैं जिनको दुनिया भर में सबसे अधिक पढ़ा जाता हैं। उनकी किताबों का सबसे ज्यादा भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।
महान दार्शनिक- विचारक ओशो ने प्रचलित धर्मों की व्याख्या की और व्यक्ति को उसकी अपनी आंतरिक क्षमता से अवगत कराया है और बुद्धत्व का पथ प्रशस्त किया है। उन्होंने आदमी की पिच्छलग्गू प्रवृत्ति को ललकारा और उसकी अदम्य, अनंत ऊर्जा शक्ति को उजागर करके उसे एक गौरव दिया। दुनिया को एकदम नए विचारों से बौद्धिक जगत को हिला देने वाले, भारतीय गुरु ओशो से अमेरिकी सरकार इस कदर प्रभावित हुई कि भय से ने उन्हें गिरफ्तार करवा दिया था।
ओशों की पुस्तकों के लिए दुनिया की 54 भाषाओं में 2567 प्रकाशन करार हुए हैं। ओशो साहित्य की सालाना बिक्री तीस लाख प्रतियों तक होती है। ओशो की पुस्तकों का पहला मुद्रण 25 हजार तक होना मामूली बात है। ओशो की पुस्तक 'जीवन की अभिनव अंतदृष्टि' सारी दुनिया में बेस्ट सेलर साबित हुयी है। वियतनाम और इंडोनेशिया में इसकी दस लाख से अधिक प्रतियाँ बिक चुकी हैं। पूरे देश में आज पूना एकमात्र ऐसा शहर है जहाँ से सबसे अधिक कोरियर और डाक विदेश जाती है।
2- संत मोरारी बापू [Morari Bapu]
मोरारी बापू का जन्म 25 सितम्बर, 1946 के दिन महुआ के समीप तलगारजा (सौराष्ट्र) में वैष्णव परिवार में हुआ। दादाजी त्रिभुवनदास का रामायण के प्रति असीम प्रेम था। तलगारजा से महुआ वे पैदल विद्या अर्जन के लिए जाया करते थे। 5 मील के इस रास्ते में उन्हें दादाजी द्वारा बताई गई रामायण की 5 चौपाइयाँ प्रतिदिन याद करना पड़ती थीं। इस नियम के चलते उन्हें धीरे-धीरे समूची रामायण कंठस्थ हो गई। दादाजी को ही बापू ने अपना गुरु मान लिया था। 14 वर्ष की आयु में बापू ने पहली बार तलगारजा में 1960 में एक महीने तक रामायण कथा का पाठ किया।
मोरारी बापू का विवाह सावित्रीदेवी से हुआ। उनके चार बच्चों में तीन बेटियाँ और एक बेटा है। पहले वे परिवार के पोषण के लिए रामकथा से आने वाले दान को स्वीकार कर लेते थे, लेकिन जब यह धन बहुत अधिक आने लगा तो 1977 से प्रण ले लिया कि वे कोई दान स्वीकार नहीं करेंगे। इसी प्रण को वे आज तक निभा रहे हैं। मोरारी बापू मिथ्या आडम्बर और प्रदर्शन से काफी दूर हैं।
सर्वधर्म सम्मान की लीक पर चलने वाले मोरारी बापू की इच्छा रहती है कि कथा के दौरान वे एक बार का भोजन किसी दलित के घर जाकर करें और कई मौकों पर उन्होंने ऐसा किया भी है। बापू ने जब महुआ में पूर्णाहुति के समय हरिजन भाइयों से आग्रह किया कि वे नि:संकोच मंच पर आएँ और रामायण की आरती उतारें। तब कुछ लोगों ने इसका विरोध भी किया और कुछ संत तो चले भी गए, लेकिन बापू ने हरिजनों से ही आरती उतरवाई। सौराष्ट्र के ही एक गाँव में बापू ने हरिजनों और मुसलमानों का मेहमान बनकर रामकथा का पाठ किया।
बापू की रामकथा का उद्देश्य है- समाज की उन्नति और भारत की गौरवशाली संस्कृति के प्रति लोगों के भीतर ज्योति जलाने की तीव्र इच्छा। मोरारी बापू अपनी कथा में शेरो-शायरी का भरपूर उपयोग करते हैं, ताकि उनकी बात आसानी से लोग समझ सकें। वे कभी भी अपने विचारों को नहीं थोपते और धरती पर मनुष्यता कायम रहे, इसका प्रयास करते रहते हैं। उनकी इच्छा थी कि पाकिस्तान जाकर रामकथा का पाठ करें, लेकिन वीजा और सुरक्षा कारणों से ऐसा संभव नहीं हो पा रहा है।
आज जिस सच्चे पथ-प्रदर्शक की जरूरत महसूस की जा रही है, उसमें सबसे पहले मोरारी बापू का नाम ही जुबाँ पर आता है, जो सामाजिक मूल्यों के साथ-साथ भारतीय संस्कृति का अलख जगाए हुए हैं। बापू का कथन है- किसी भी समस्या को सुलझने का पहला और अंतिम रास्ता संवाद ही होता है। जब शस्त्र से काम न बने तो शास्त्रों का सहारा लेना चाहिए। प्रेम और करूणा अंतर्मन से प्रवाहित होती हैं। अगर ये चीजें अंतर्मन से प्रवाहित न हो तो आतंक बढ़ जाता है।
रामचरित मानस को सरल, सहज और सरस तरीके से प्रस्तुत करने वाले 62 वर्षीय बापू की सादगी का कोई सानी नहीं है। जहाँ पर कथा होती है, वहाँ लाखों की संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहते हैं। बापू की वाणी में ऐसा जादू है, जो श्रोताओं को बाँधे रखता है। खासियत तो यह है कि उनकी कथा में न केवल बुजुर्ग महिला-पुरुष मौजूद रहते हैं, बल्कि युवा वर्ग भी काफी संख्या में मौजूद रहता है। वे न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी रामकथा की भागीरथी को प्रवाहित कर रहे हैं।
क्विज में दिए गए दोनों प्रबुद्ध विचारकों / संतों की वाणी
ओशो रजनीश
मोरारी बापू
"सी.एम.ऑडियो क्विज़- 10" के विजेता प्रतियोगियों के नाम
आशा है जो इस बार सफल नहीं हुए वो आगामी क्विज में अवश्य सफल होंगे
आप सभी का हार्दिक धन्यवाद
यह आयोजन मनोरंजन के साथ साथ ज्ञानवर्धन का एक प्रयास मात्र है ! अगर आपके पास कोई सुझाव हो तो हमें ज़रूर ई-मेल करें! अंत में हम सभी प्रतियोगियों और पाठकों का पुनः आभार व्यक्त करते हैं जिन्होंने क्रियेटिव मंच की क्विज़ में शामिल होकर हमारा उत्साह बढाया.
6 मार्च 2011, रविवार को हम ' प्रातः दस बजे'एक नई क्विज के साथ यहीं मिलेंगे !
'सी.एम.ऑडियो क्विज़- 9'आयोजन में भाग लेने वाले सभी प्रतिभागियों और विजेताओं को बधाई। इस बार की क्विज में सुनवाए गए दो दिग्गज शायरों को पहचान पाना इतना आसान होगा यह सोचा न था। ऐसा प्रतीत होता है कि अच्छी शेरो-शायरी सुनने/पढ़ने का शौक रखने वाले आज भी बहुत हैं। उर्दू शायरी के लिए बहुत ही अच्छी खबर है। इस बार 18 प्रतियोगियों ने हमें सही जवाब दिए।
सबसे पहले इस बार सबको लाजवाब हिंट देने वाले शिवेंद्र सिन्हाजी ने सही जवाब देकर प्रथम स्थान हासिल किया। उसके बाद क्रमशः द्वितीय एवं तृतीय स्थान पर डा०अजमल खानजी और गजेन्द्रसिंहजी रहे।
इस बार अफ़सोस इस बात का हुआ कि हमारे पुराने दिग्गज प्रतियोगी आशीष मिश्रा जी और दर्शनजी थोडा सा चूक गए। उन्होंने अपने जवाब में राहत इन्दौरी जी के नाम की जगह रहमत इन्दौरी लिखा था जिसके कारण वे विजेता लिस्ट में जुड़ने से वंचित रह गये.
आप सभी अपना स्नेह यूँ ही बनाये रखिये। आपकी प्रतिक्रिया और सुझावों की प्रतीक्षा रहेगी। अब अगले रविवार को "सी.एम.ऑडियो क्विज़-10" में आपसे पुनः यहीं मुलाकात होगी।
समस्त विजेताओं व प्रतिभागियों को एक बार पुनः बहुत-बहुत बधाई और शुभ कामनाएं।
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अबआईये -
''सी.एम.ऑडियो क्विज-9' के पूरे परिणाम के साथ ही क्विज में पूछे गए दोनों हरदिल अज़ीज़ शायरों के बारे में बहुत संक्षिप्त जानकारी प्राप्त करते हैं :
1- शायर राहत इन्दौरी [Rahat Indori]
राहत इन्दौरी (जन्म: 01 जनवरी 1950) किसी तआरुफ़ के मोहताज़ नहीं हैं। फ़िल्मी दुनिया से लेकर मुशायरों तक और मुशायरों से लेकर अदब तक में राहत इन्दौरी जी का नाम बड़ी इज्ज़त से लिया जाता है। अंजुम रहबर जो राहत इन्दौरी साहब की पत्नी हैं और बहुत अच्छी शायरा भी हैं।
राहत इन्दौरी ने अपनी जिंदगी के शुरूआती दौर में बहुत संघर्ष किया है। शायद यही वजह है कि वे जिस जद्दोजहद से रूबरू हुए, उसी जाती तजुर्बात की परछाइयाँ उनकी शायरी में नज़र आती है। राहत इन्दौरी एक ऐसे शायर हैं जो हर उस मुल्क में जाने-पहचाने जाते हैं जहाँ उर्दू बोली और समझी जाती है। तकरीबन चालीस वर्षों से राहत साहब ने मुशायरों के स्टेज पर मुसलसल एक हलचल-सी पैदा कर रखी है। वह मुशायरा मुकम्मल नहीं समझा जाता जिसमें राहत शरीक न हों।
राहत साहब का पेंटिंग से काफी रिश्ता रहा है. वे खुद भी कहते हैं - 'मैं बुनियादी तौर पर पेंटर ही हूँ। मेरे अंदर मौजूद पेंटर और शायर में गहरा रिश्ता है। जिंदगी का काफी लंबा वक्त मैंने पेंटिंग में गुजारा है। मेरे अंदर शायर तो यकायक पनपा। वैसे मैं इन दोनों माध्यमों में फर्क नहीं समझता। पेंटिंग कैनवस पर होती है और शायरी कागज़ पर। पेंटिंग में आप कैनवस पर रंग भरते हैं और शायरी में रोशनाई से लफ्ज़ लिखते हैं।'
बतौर शायर राहत साहब अपने सफर के बारे में कहते हैं - 'हर जिंदादिल शायर अपने आसपास के माहौल से देशकाल से प्रभावित होता है। मैं भी जब अपने आसपास - ज्यादतियां और नफरत देखता हूँ तो मेरे अन्दर मौजूद शायर उनपर गौर कर शेर कहता है। जिन हालात से मेरा किरदार गुजारता है। मैं उसपर फिक्रो-ख़याल करके कलम चलाता हूँ और ज़ज्बात को अलफ़ाज़ का जामा पहनाता हूँ। दुनिया ने ताज़ुर्बातो-हवादिस कि शक्ल में, जो कुछ मुझे दिया लौटा रहा हूँ मैं'
राहत इन्दौरी की शायरी बहुत दिलकश और खरी होती है। वे पापुलरिटी हासिल करने के लिए कभी भी शायरी की गुणवत्ता से समझौता नहीं करते। यही वजह है कि उनका लिखा लोगों को खूब पसंद आता है और याद भी रहता है। ये किसी शायर की लोकप्रियता का सबसे अहम पहलू है। राहत जब ग़ज़ल पढ़ रहे होते हैं तो उन्हे देखना और सुनना दोनो एक अनुभव से गुज़रना है। गुफ़्तगू सी लगती उनकी शायरी में सुनने वाला राहत के क़लम की कारीगरी का मुरीद हो जाता है। उनका माइक्रोफ़ोन पर होना ज़िन्दगी का होना होता है। यह अहसास सुननेवाले को बार-बार मिलता है कि राहत रूबरू हैं और अच्छी शायरी सिर्फ़ और सिर्फ़ इस वक़्त सुनी जा रही है। उनके शब्द और आवाज़ का करतब हिप्नोटाइ़ज़ सा कर लेता है।
राहत इन्दौरी की शायरी इसलिये भी ध्यान से सुनी जाती है क्योंकि उनकी आवाज़ का तेवर अशाअर के मूड को रिफ़्लेक्ट करता है। राहत इन्दौरी जी ने कई फिल्मों में गाने लिखे और वे गाने खूब हिट भी हुए, लेकिन उन्हें फिल्मों में गाने लिखना ख़ास रास नहीं आया। कारण बताते हुए वे कहते हैं - 'हिंदी फिल्मों में इस समय जो गाने लिखे जा रहे हैं उनमे गिरावट आई है। फिल्मों में जिस तरह के गाने लिखवाने की बात की जाती है वो मुझे मंज़ूर नहीं।'
मुशायरे के निरंतर गिरते स्तर से भी राहत खुश नहीं हैं। उनका कहना है- 'आज मुशायरे के स्तर में गिरावट की बड़ी वजह बाज़ार का हावी होना है। वहाँ पर भी क्वालिटी से समझौता हो रहा है। मुशायरों को तीसरे दर्जे के शायरों ने नुक्सान पहुंचाया है। गैर ज़िम्मेदार शायर मुशायरों को चौपट कर देते हैं। शायरी बिना मेयार और सलीके के नहीं होती। मुशायरों में नाचने और गाने वालों का काम नहीं है कि किसी के भी हाथ में माइक पकड़ा दिया जाए। मुशायरों में अच्छी शायरी पर जोर होना चाहिए।
2- शायर मुनव्वर राना [Munawwar Rana]
मुनव्वर राना का जन्म उत्तर प्रदेश के रायबरेली ज़िले में 26 नवंबर 1952 को हुआ था। रायबरेली शहर से मुनव्वर राना जी के खानदान का सम्बन्ध करीब 700 साल से है। परिवार में शायरी का शौक सबको था लेकिन शायरी कोई नहीं करता था। वालिद को भी शायरी सुनने का शौक था। शुरू-शुरू में मुनव्वर कलकत्ते में अपने कालेज के प्रोफ़ेसर एजाज को अपना लिखा दिखाते रहते थे। प्रोफ़ेसर एजाज के गुजर जाने के बाद उन्ही दिनों मुनव्वर जी की 'वाली आसी' से मुलाकात हुई। तब मुनव्वर अली आतिश के नाम से लिखते थे। उन्होंने ही मुनव्वर राना नाम दिया।
राना साहब की शायरी में जहाँ दर्द का एहसास है, खुद्दारी है, वहीं ऱिश्तों का एहतराम भी है। उन्होंने रिश्तों की अच्छाई और बुराई को अपने शेरों में तोला है। बुज़ुर्गों के बारे में वो बड़ी बेबाकी से कहते है– खुद से चलकर नहीं ये तर्ज़े सुखन आया है, पांवदाबे है बुज़ुर्गों के तो फन आया है। अधिकतर शायरों ने ‘औरत’ को सिर्फ़ महबूबा समझा। मगर मुनव्वर राना ने औरत को औरत समझा। औरत जो बहन, बेटी और माँ होने के साथ साथ शरीके-हयात भी है। उनकी शायरी में रिश्तों के ये सभी रंग एक साथ मिलकर ज़िंदगी का इंद्रधनुष बनाते हैं। मुनव्वर राना की शायरी का ताना-बाना ज़िंदगी के रंग बिरंगे रेशों, सच्चाइयों और खट्टे-मीठे अनुभवों से बुना गया है। उनकी शायरी में रिश्तों की एक ऐसी सुगंध है जो हर उम्र और हर वर्ग के आदमी के दिलो दिमाग पर छा जाती है।
मुनव्वर राना की सादगी हमेशा से ही बाँध लेती रही है। वे बड़ी ही मासूमियत से बड़ी बड़ी बातें कह जाते हैं। एक शेर में वो ज़िंदगी की दौड़ में सबसे पीछे रह जाने वाले वर्ग की बात कहते हैं - 'सोजातेहैंफुटपाथपेअख़बारबिछाकरमज़दूरकभीनींदकीगोलीनहींखाते।' वे हिंदुस्तान के ऐसे अज़ीम-ओ-शान शायर हैं जिसने ‘माँ’ की शख़्सियत को ऐसी बुलंदी दी है जो पूरी दुनिया में बेमिसाल है –
'इस तरह मेरे गुनाहों को धो देती है माँ बहुत गुस्से में हो तो रो देती है' 'अभी ज़िन्दा है माँ मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा, मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है' 'मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ' 'माँ के आगे यूँ कभी खुल कर नहीं रोना जहाँ बुनियाद हो इतनी नमीं अच्छी नहीं होती'
मुनव्वर जी के इन शेरों के आगे…माँ पर उनसे बेहतर उर्दू शायरी में और कहीं शेर देखने को नहीं मिलते. बिना थोथी भावुकता के वो ऐसे नायाब शेर निकालते हैं की तबियत बाग बाग हो जाती है… आँखें नम और मुंह से बरबस वाह वा…निकल पड़ती है. ये शेर जब वो अपने अंदाज़ में सुनते हैं तो देखते ही बनता है… मुशायरे और काव्य-गोष्ट्ठियों में कहकहे और ठहाके तो अक्सर सुनाई देते है पर आखों में नमी, मुनव्वर राना जैसे हुनरमंद ही ला पाते है।
राना साहब फरमाते हैं - 'जब तुलसीदास के महबूब राम हो सकते हैं तो मेरी महबूबा मेरी मां क्यों नहीं हो सकती। फिर हम एक ऐसे खुशनसीब मुल्क के रहने वाले है जहां गंगा और जमुना तक को मां कहा जाता है, सरस्वती और दुर्गा को मां कहा जाता है, हम अब तक तो गाय को भी मां समझते थे, लेकिन कालोनी कल्चर आते ही हम मां को भी गाय समझने लगे। हम मां पर शायरी करते है तो यह सिर्फ शायरी नहीं है, यह ओल्ड एज होम के खिलाफ ऐलाने-जंग है।
यह उनका माँ से मोहब्बत का ज़ज्बा था, उनकी सोच की गहराई थी, रिश्तों का एहसास था जो उन्होंने अपनी पुस्तक ” माँ ” को किसी को भेंट देते वक्त, उस पर औटोग्राफ देने से यह कह कर मना कर दिया – “माफ़ कीजिए, मैं माँ पर दस्तखत नही करता।”
अपनी किताब ‘माँ‘ में मुनव्वर साहब कहते है–” बचपन में मुझे सूखे की बीमारी थी, शायद इसी सूखे का असर है कि आज तक मेरी ज़िन्दगी का हर कुआँ खुश्क है, आरजू का, दोस्ती का, मोहब्बत का, वफ़ादारी का ! माँ कहती है बचपन में मुझे हँसी बहुत आती थी, हँसता तो मैं आज भी हूँ लेकिन सिर्फ़ अपनी बेबसी पर, अपनी नाकामी पर, अपनी मजबूरियों पर लेकिन शायद यह हँसी नहीं है, मेरे आँसुओं की बिगड़ी हुई तस्वीर है।
गजल की कामयाबी को नए ढंग से अंजाम देने वाले राना आज मुशायरों के बादशाह है। उनके गजल लिखने और पढ़ने का ढंग बेहद सादा किंतु पुरअसर है। उनकी गजलें न तो उर्दू शायरी की रवायत की हमराह दिखती है न उनमें अलंकरण की नक्काशी नजर आती है। मुनव्वर राना साहब अपनी शायरी में इंसानी तक़ाज़ों को कभी दरकिनार नहीं करते।
क्विज में दिए गए दोनों शायरों को मुशायरे में सुनिए
शायर राहत इन्दौरी
शायर मुनव्वर राना
"सी.एम.ऑडियो क्विज़- 9" के विजेता प्रतियोगियों के नाम
आशा है जो इस बार सफल नहीं हुए वो आगामी क्विज में अवश्य सफल होंगे
आप सभी का हार्दिक धन्यवाद
यह आयोजन मनोरंजन के साथ साथ ज्ञानवर्धन का एक प्रयास मात्र है ! अगर आपके पास कोई सुझाव हो तो हमें ज़रूर ई-मेल करें! अंत में हम सभी प्रतियोगियों और पाठकों का पुनः आभार व्यक्त करते हैं जिन्होंने क्रियेटिव मंच की क्विज़ में शामिल होकर हमारा उत्साह बढाया.
27 फरवरी 2011, रविवार को हम ' प्रातः दस बजे'एक नई क्विज के साथ यहीं मिलेंगे !